Author: rahul-tomar

rahul-tomar

प्रतीक्षा

उसकी पसीजी हथेली स्थिर है उसकी उंगलियां किसी बेआवाज़ धुन पर थिरक रही हैं उसका निचला होंठ दांतों के बीच नींद का स्वांग भर जागने को विकल लेटा हुआ है

किक्की के लिए

तुम्हें बढ़ते हुए देखने से ज़्यादा सुखद मेरे लिए और कुछ नहीं, परन्तु तुम ऐसे वक़्त में बड़ी हो रही हो मेरी बच्ची जब मानवता की हांफनी छूटी जा रही

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